मेघ चालीसा
मेघ वंदना
वस्त्रहीन थे आदि मानव, वृक्ष छाल लिपटाई
जंगली गुफाएँ पेड़ों के वासी मानुषता लज्जाई (1)
धन्य धन्य उपकार तुम्हारा, ऐसी विधि अपनाई
हथचरखा से वस्त्र बनाया, मेघ ऋषि अनुयायी (2)
सत्य अहिंसा और शालीनता, मेघों की परछाई
मिलनसार, गुणवान मेधावी, संतोषी स्वाध्यायी (3)
जय जय जय जयकार तुम्हारी, विश्व कल्याण सुहाई
हथचरखा से वस्त्र बनाया, मेघ ऋषि अनुयायी (4)
नैतिकता और नेक कमाई, सुसंस्कृति अपनाई
मानवता के भाव भिगो कर, हर घर खुशहाली छाई (5)
मानव धर्म की रक्षा कीन्हीं, जाति वर्ण मिटाई
हथचरखा से वस्त्र बनाया, मेघ ऋषि अनुयायी (6)
स्वर्ग नरक है इस जीवन में, परलोक कहाँ से आई
इधर से जाते देखे सभी को, उधर से आया न कोई (7)
सदाचार सदा सुखदायी, दुराचरण दुखदायी
हथचरखा से वस्त्र बनाया, मेघ ऋषि अनुयायी (8)
कलियुग में है संघे शक्ति, युग पुरुषों ने बताई
इस जीवन में सत्य कर्म कर, मेघदूत बन भाई (9)
ज्ञान बोझ है बिन प्रयोगा, धैर्य धर क्रोध बुझाई
हथचरखा से वस्त्र बनाया, मेघ ऋषि अनुयायी (10)
यथा शक्ति से परोपकार कर, भय और भूख मिटाई
भाग्य भरोसे रहे न कोई, खुद दीपक बन जाई (11)
पुनर्जन्म छोड़ गौड़ अब, मेघ वंदना गाई
हथचरखा से वस्त्र बनाया, मेघ ऋषि अनुयायी (12)
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