1857 की क्रान्ति- मेघों का विद्रोह
पाकिस्तान के थार-पारकर क्षेत्र में 'नगर पारकर' तालुके में इसी नाम का एक क़स्बा, जो अंग्रेजों के समय थार पारकर की राजनैतिक सुप्रिनटेडेेंसी में उनके अधीन था। यह क़स्बा उमरकोट के दक्षिण-पूर्व में लगभग 120 मील की दूरी पर है। उस समय भी यह क़स्बा विरवः, छाचरा, इस्मालकोट, मिट्ठी, आदिगाँव, पितापुर, बिरानी और बेला आदि गांवों और नगरों से सड़क मार्ग के द्वारा जुड़ा था। 1862 में यहाँ पर नगर पालका का गठन हआ। इस कसबे में कताई-बुनाई का व्यवसाय कभी सिर पर था। जिसमे वहां के मेंघवाल परिवार कई पीढ़ियों से इस हूनर के सिद्धहत कारीगर बहुतायत से इसे आजीविका के रुप में संलग्न थे। जब सन 1862 में नगर पालिका का गठन हआ तब इस कसबे की जनसंख्या लगभग 2355 आंकी गयी थी। जिनमे 539 मुसलमान और 1816 हिंदू थे। हिंदुओं में सर्वाधिक मेघ थे। कपास पर अत्यधिक टेक्स , बुनाई पर टेक्स, व्यापर पर चुंगी का अत्य धिक भार, खेती-बाड़ी पर टेक्स आदि ने जनता में असंतोष को बढ़ा दिया था। अतः जब देश के अन्य भागों में 1857 का विद्रोह हुआ तो यहाँ भी विद्रोह की चिनगारी फूट पड़ी और यहाँ के मेघों सहित यहाँ की जनता राणा के पास गयी। राणा उस समय अंग्रेजों का कारींदा ही था, परतु उसन जनता का प्रबल विरोध देखते हुए जनता का साथ देने का निश्चय किया और राजा के विरुद्ध खुले रूप में विद्रोह का सूत्रपात हो गया। जसमे वहां के मेघों ने बढ़-चढ़ कर इस विद्रोह में हिस्सा लिया।
पहली बात तो यह थी कि उनके ऊपर कताई-बुनाई के ऊपर अत्यधिक टेक्स भार से उनका जीना दूभर था, दूसरा कृषि आधारित उनके जीवन पर भी दोहरी मार पड रही थी। उनकी आबादी भी ज्यादा थी। अंग्रेजों ने इस विद्रोह को दबाने हेतु मई 1859 में कर्नल इवाम के नेतृत्व में नगर पारकर सैन्य टुकड़ी भेजी। जिसका मुकाबला वहां की मेघों ने बड़ी बहादुरी से किया परतु, अंततः कनल ईवाम यह विद्रोह दबाने में सफल हआ। वहां के कई विद्रोही परिवारों ने वर्तमान राजथान के बाड़मेर और जैसलमेर के इलाको में शरण ली। पाकिस्तान से सटे बाड़मेर इलाके में बसे ज्यादात्तर मेघवाल परिवारों में उस विद्रोह के कई शरणापन्न परिवारों के वंशधर है। मई 1859 में कर्नल ईवाम द्वारा दबाया गया यह विद्रोह पूरी तरह से उस समय शांत नहीं हुआ था। कई मेघ व अन्य लोग वहां से कूच कर गए थे। उन्होंने पुनः जून 1859 में संगिठत होकर नगर पारकर पर फिर धावा बोल दिया, उस समय राणा और उसका मंत्री अखाजी धर दबोचे गये थे।
( यह जानकारी कर्नल ईवाम के गुप्त पत्राचार से )
पाकिस्तान के थार-पारकर क्षेत्र में 'नगर पारकर' तालुके में इसी नाम का एक क़स्बा, जो अंग्रेजों के समय थार पारकर की राजनैतिक सुप्रिनटेडेेंसी में उनके अधीन था। यह क़स्बा उमरकोट के दक्षिण-पूर्व में लगभग 120 मील की दूरी पर है। उस समय भी यह क़स्बा विरवः, छाचरा, इस्मालकोट, मिट्ठी, आदिगाँव, पितापुर, बिरानी और बेला आदि गांवों और नगरों से सड़क मार्ग के द्वारा जुड़ा था। 1862 में यहाँ पर नगर पालका का गठन हआ। इस कसबे में कताई-बुनाई का व्यवसाय कभी सिर पर था। जिसमे वहां के मेंघवाल परिवार कई पीढ़ियों से इस हूनर के सिद्धहत कारीगर बहुतायत से इसे आजीविका के रुप में संलग्न थे। जब सन 1862 में नगर पालिका का गठन हआ तब इस कसबे की जनसंख्या लगभग 2355 आंकी गयी थी। जिनमे 539 मुसलमान और 1816 हिंदू थे। हिंदुओं में सर्वाधिक मेघ थे। कपास पर अत्यधिक टेक्स , बुनाई पर टेक्स, व्यापर पर चुंगी का अत्य धिक भार, खेती-बाड़ी पर टेक्स आदि ने जनता में असंतोष को बढ़ा दिया था। अतः जब देश के अन्य भागों में 1857 का विद्रोह हुआ तो यहाँ भी विद्रोह की चिनगारी फूट पड़ी और यहाँ के मेघों सहित यहाँ की जनता राणा के पास गयी। राणा उस समय अंग्रेजों का कारींदा ही था, परतु उसन जनता का प्रबल विरोध देखते हुए जनता का साथ देने का निश्चय किया और राजा के विरुद्ध खुले रूप में विद्रोह का सूत्रपात हो गया। जसमे वहां के मेघों ने बढ़-चढ़ कर इस विद्रोह में हिस्सा लिया।
पहली बात तो यह थी कि उनके ऊपर कताई-बुनाई के ऊपर अत्यधिक टेक्स भार से उनका जीना दूभर था, दूसरा कृषि आधारित उनके जीवन पर भी दोहरी मार पड रही थी। उनकी आबादी भी ज्यादा थी। अंग्रेजों ने इस विद्रोह को दबाने हेतु मई 1859 में कर्नल इवाम के नेतृत्व में नगर पारकर सैन्य टुकड़ी भेजी। जिसका मुकाबला वहां की मेघों ने बड़ी बहादुरी से किया परतु, अंततः कनल ईवाम यह विद्रोह दबाने में सफल हआ। वहां के कई विद्रोही परिवारों ने वर्तमान राजथान के बाड़मेर और जैसलमेर के इलाको में शरण ली। पाकिस्तान से सटे बाड़मेर इलाके में बसे ज्यादात्तर मेघवाल परिवारों में उस विद्रोह के कई शरणापन्न परिवारों के वंशधर है। मई 1859 में कर्नल ईवाम द्वारा दबाया गया यह विद्रोह पूरी तरह से उस समय शांत नहीं हुआ था। कई मेघ व अन्य लोग वहां से कूच कर गए थे। उन्होंने पुनः जून 1859 में संगिठत होकर नगर पारकर पर फिर धावा बोल दिया, उस समय राणा और उसका मंत्री अखाजी धर दबोचे गये थे।
( यह जानकारी कर्नल ईवाम के गुप्त पत्राचार से )
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