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शिवरात्रि/समुन्दर मंथन की वास्तविकता

Sunday, March 6, 2016

शिवरात्रि/समुन्द्र मंथन की वास्तविकता-

ऋग्वेद मे शिव जन( कबीले )का वर्णन है जो हिमालय के आसपास पहाड़ी क्षेत्र में रहता था ।इस जन का हर एक व्यक्ति शिव कहलाता था।इसी शिव जन में  रूद्र नाम के एक व्यक्ति का जन्म हुआ इस कारण रूद्र को शिव कहा गया।रूद्र का जन्म कब हुआ और उसके माँ बाप कौन थे इसका वर्णन वेदों में नही है।

जब आर्य-अनार्य युद्ध(देवासुर संग्राम)अर्थात ब्राह्मणों के पूर्वज देवो और हमारे पूर्वज असुरो के बीच युद्ध चल रहा था तो इस युद्ध में आर्यो की हार होने लगी ।अनार्यो ने आर्यो के जीते हुए भाग पर पुनः कब्ज़ा कर लिया था। आर्यो(ब्राह्मणों) की स्त्रियां,पशु,वेद भी अनार्यो(हमारे पूर्वजो) के कब्जे में आ गए  तो आर्यो ने समझोता करने में ही अपनी भलाई समझी अर्थात आर्यो ने अपनी हार को एक समझोते में बदल दिया। यह समझोता समुद्र के किनारे मंदार पर्वत के निकट किया गया। इस समझोते में अनार्यो के मुखिया हमारे पूर्वज राजा बलि थे। इस समझोते में अनार्य शिव(रूद्र) और शेष नाग(यह कोई सर्प नही था,नाग वंशी आदमी था) ने मध्यस्था का काम किया ।

इस संमझोते में आर्यो ने  अनार्यो के साथ पूर्व नियोजित छल किया...
आर्यो (ब्राह्मणों)के मुखिया विष्णु ने अनार्य असुरो(हमारे पूर्वजो) को सुरा पिलाकर बेहोश कर दिया , फिर हमारे पूर्वज शिव को विष पिलाकर खून कर दिया तत्पश्चात आर्य अपने वेद,स्त्रियां,पशु ले भागे। यह फाल्गुन मास चतुर्दशी का दिन था।

शिव को देखने के लिए अनार्य शिव जनो को भीड़ इकठ्ठा हुई। वे रूद्र को याद करते रहे और रात भर रोते रहे। इस तरह हर वर्ष शिव जन रात भर बैठकर  रूद्र के मारे जाने का दुःख मानाने लगे और उनके गीत गाने लगे। इस प्रकार आगे चलकर  इस रात्रि का नाम" शिव रात्रि" पड़ गया।

ब्राह्मणों ने हमारे पूर्वज और आने वाली पीढ़ी को गुमराह करने के लिए समुद्र मंथन की मनगढ़ंत कथा बनाई और कहा कि शिव (रूद्र)विष पीकर मरे नही थे,वे अमर हो गए थे। उन्होंने विष को गले से नीचे उतरने नही दिया इस तरह उनका गला नीला पड़ गया। इस कहानी के बाद ब्राह्मणों ने शिव का एक और नाम नीलकंठ रख दिया जिससे लोग भ्रमित हो जाए।

भारत का इतिहास गवाह है कि गंगा नदी हिमालय से निकली है लेकिन ब्राह्मणों ने कथा गढ़ी कि गंगा नदी शिव की जटाओ से निकली है। इस तरह ब्राह्मणों ने रूद्र का एक और नाम रख दिया-गंगाधर
पशुपति की उपाधि तथागत गौतम बुद्ध को दी गयी थी। ब्राह्मणों ने नेपाल में बुद्ध मंदिर पर कब्ज़ा करके इसको शिव मन्दिर में बदला और शिव को पशुपति शिव बना दिया।इस प्रकार शिव का एक और नाम हो गया- पशुपति शिव

तथागत गौतम बुद्ध को पीपल के पेड़ के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था इसलिए हीनयनि बौद्ध पीपल के पेड़(बोधि वृक्ष) की पूजा करते थे। बौद्ध धर्म का इतिहास मिटाने के लिए ब्राह्मणों ने इसी पीपल के पेड़ के नीचे एक पत्थर रखकर इसको शिव से जोड़ दिया और नाम रखा पिपलेश्वर महादेव। इस तरह शिव का एक और नाम हो गया-पिपलेश्वर महादेव।

ब्राह्मणों ने बौद्धों से बोला कि ईश्वर है उसने ये संसार बनाया है। आपको पैदा किया है। बौद्धों ने बोला कि ईश्वर कल्पनामात्र है वो कुछ नही होता है। ये संसार प्राकृतिक है। सृष्टि  लिंग-योनि की क्रिया-कलापो से चलती है।इस तरह ब्राह्मणों ने शुंग वंश काल के बाद लिंग-योनि की मूर्ति बनाकर हमारे पूर्वज बौद्धों से ताकत के बल पर पूजवाई। आठवी शताब्दी में दक्षिण भारत केरल में शंकर नाम का एक आचार्य हुआ जिसका बौद्धों से झगड़ा हुआ और वह केरल छोड़कर उत्तर भारत में आ गया। उसने उत्तर भारत में ब्राह्मणों का एक ग्रुप बनाया और केदारनाथ के बौद्ध मंदिर/विहार पर कब्ज़ा करके बुद्ध की मूर्ति और अन्य बुद्ध प्रतीकों को ध्वस्त कर दिया तत्पश्चार  वहां के बौद्धों से लिंग-योनि की मूर्ती पूजवाई। आगे चलकर लोग इस मंदिर को शंकर नाम के आचार्य के नाम पर शंकर का मंदिर बोलने लगे। इस तरह इस शंकर नाम के आचार्य ने तीन अन्य बौद्ध धामो को ध्वस्त करके ब्राह्मणों के चार  व्यावसायिक केन्द्रो में बदला।आज ये व्यावसायिक केंद्र ही ब्राह्मणों के चार धाम है।

बारहवी शताब्दी के बाद लिंग-पुराण की रचना हुई और इन लिंग योनि की पूजा को कपोलकल्पित कहानी द्वारा शिव से जोड़ दिया गया। शिव के मुख से कहलवाया गया कि मेरे लिंग(शिव लिंग) की पूजा करो। 12 व्यावसायिक केन्द्रो को 'ज्योति लिंग' बना दिए गए....
केदारनाथ का लिंग- योनि मंदिर जो आगे चलकर शंकर नाम के आचार्य के नाम पर शंकर मंदिर कहलाया था, वो भी शिव से जोड़ दिया इस तरह शिव का एक और नाम हुआ -शंकर

बौद्ध धर्म को आघात पहुंचाकर ब्राह्मण धर्म के परिवर्तित रूप( हिन्दू धर्म) की वास्तविक नीव इसी शंकर नाम के आचार्य ने रखी ,इसको संक्षेप में शंकराचार्य कहा जाता था।इसके बाद हिन्दू धर्म के जितने भी ब्राह्मण ठेकेदार बने उनको शंकराचार्य कहा जाने लगा.....

आज हम अपने ही पूर्वज रूद्र(शिव) के मरण दिन को ख़ुशी के रूप में मना रहे है और ब्राह्मण बेवकूफ बनाकर धन कमा रहा है। इस दिन शिव का जन्म,शिव की शादी और समुन्द्र मन्थन का दिन बताकर इसको "महाशिव रात्रि" बताता है।शादी और जन्म तो और लोगो का भी हुआ है लेकिन कोई भी अपने शादी या जन्मदिन को रात्रि के रूप में नही मनाता है। फिर ये ही दिन रात्रि क्यों बना ...?

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